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अष्ट प्रातहारजजुत देव, जिनकी करें इन्द्रशत सेव। तिनजिनवर प्रतिमा अवलोक, लेवर शालि अखण्डितपोख।।
मंगल निर्वाणक महावीर, प्रातः समय पूजो भविधीर।। ऊँ ह्रीं श्री निर्वाणकल्याणप्राप्ताय श्री महावीरजिनेन्द्राय अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा।
चार अनन्त चतुष्टय सार, ये गुण छयालीस हैं जगतार। श्री जिनप्रतिमा पूजों सार, ले वर सुमन विविध परकार।।
__ मंगल निर्वाणक महावीर, प्रातः समय पूजो भविधीर।। ऊँ ह्रीं श्री निर्वाणकल्याणप्राप्ताय श्री महावीरजिनेन्द्राय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।
क्षुधातृषादि आठ-दश-दोष, हरत शिवगवर भवदधि सोस। तिनि जिनवर प्रतिबिम्ब निहार, पूजनको भरिनेवज थार।।
मंगल निर्वाणक महावीर, प्रातः समय पूजो भविधीर।। ऊँ ह्रीं श्री निर्वाणकल्याणप्राप्ताय श्री महावीरजिनेन्द्राय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
लोकालोक भेद जिनगाय, जीव अजीव तत्त्व दरसाय। तिन प्रतिबिम्ब निरख निजहेत, दीपक ले निर्मल अतिचेत।।
__ मंगल निर्वाणक महावीर, प्रातः समय पूजो भविधीर।। ऊँ ह्रीं श्री निर्वाणकल्याणप्राप्ताय श्री महावीरजिनेन्द्राय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
मिथ्याभ्रमकर भ्रमे अनादि, जगतजीव जग में बहु बादि। तिनको शिवगति सार बताय, तिनप्रति धूप दशांग चढ़ाय।।
मंगल निर्वाणक महावीर, प्रातः समय पूजो भविधीर।। ऊँ ह्रीं श्री निर्वाणकल्याणप्राप्ताय श्री महावीरजिनेन्द्राय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।
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