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शांति-पाठ
शास्त्रोक्त-विधि पूजा-महोत्सव सुरपती चक्री करें | हम सारिखे लघु-पुरुष कैसे यथाविधि पूजा करें || धन-क्रिया-ज्ञानरहित न जाने रीति-पूजन नाथ जी | हम भक्तिवश तुम चरण आगे जोड़ लीने हाथ जी ||१||
दुःखहरण मंगलकरण आशाभरण जिनपूजा सही | यो चित्त में श्रद्धान मेरे शक्ति है स्वयमेव ही || तुम सारिखे दातार पाए काज लघु जायूँ कहा | मुझे आप सम कर लेहु स्वामी यही इक वाँछा महा ||२|| संसार भीषण-विपिन में वसुकर्म मिल आतापियो | तिस दाह तें आकुलित चित है शांति-थल कहुँ ना लह्यो || तुम मिले शांति-स्वरूप शांतिकरण-समरथ जगपति | वसु-कर्म मेरे शांत कर दो (3) शांतिमय पंचम गति ||३||
जबलों नहीं शिव लहूँ तबलों देहु यह धन पावना | सत्संग शुद्धाचरण श्रुत-अभ्यास आतम-भावना || तुम बिन अनंतानंत-काल गयो रुलत जगजाल में | अब शरण आयो नाथ दोऊ कर जोड़ नावत भाल मैं ||४||
(दोहा) कर-प्रमाण के मान तें गगन नपे किहिं भंत | त्यों तुम गुण-वर्णन करत कवि पावे नहिं अंत ||
(कायोत्सर्गपूर्वक नौ बार णमोकार-मंत्र जपना चाहिये।)
विसर्जन-पाठ
सम्पूर्ण-विधि कर वीनऊँ इस परम पूजन ठाठ में | अज्ञानवश शास्त्रोक्त-विधि तें चूक कीनी पाठ में || सो होहु पूर्ण समस्त विधिवत् तुम चरण की शरण तें | वंदू तुम्हें कर जोड़ि, कर उद्धार जामन-मरण तें ||१||
आह्वाननं स्थापनं सन्निधिकरण विधान जी | पूजन-विसर्जन यथाविधि जा नहीं गुणखान जी || | जो दोष लागौ सो नसे सब तुम चरण की शरण तें | वंदू तुम्हें कर जोड़ि, कर उद्धार जामन-मरण तें ||२|| तुम रहित आवागमन आह्वानन कियो निजभाव में | विधि यथाक्रम निजशक्ति-सम पूजन कियो अतिचाव में||
करहूँ विसर्जन भाव ही में तुम चरण की शरण तें | वंदू तुम्हें कर जोड़ि कर उद्धार जामन-मरण तें ||३||
(दोहा) तीन भुवन तिहूँ काल में, तुम-सा देव न और | सुखकारण संकटहरण, नमौं जुगल-कर जोर || श्री जिनवर की आसिका, लेऊँ शीश चढ़ाय | भव-भवके पातक कटें, दु:ख दूर हो जाय ||
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलिं क्षिपेत् ॥
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