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अर्घ्य
श्री आदिनाथ-जिन का अर्घ्य शुचि निर्मल नीरं गंध सुअक्षत, पुष्प चरू ले मन हरषाय | दीप धूप फल अर्घ सु लेकर, नाचत ताल मृदंग बजाय || श्री आदिनाथजी के चरणकमल पर, बलिबलि जाऊँ मन-वच-काय | हो करुणानिधि भव-दुःख मेटो, या तें मैं पूजू प्रभु-पाँय || ओं ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।९।
श्री चंद्रप्रभ जिन का अर्घ्य सजि आठों-दरब पुनीत, आठों-अंग नमूं | पूजू अष्टम-जिन मीत, अष्टम-अवनि गम || श्री चंद्रनाथ दुति-चंद, चरनन चंद लगे | मन-वच-तन जजत अमंद, आतम-जोति जगे || ओं ह्रीं श्रीचंद्रप्रभजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।९।
श्री शांतिनाथ जिन का अर्घ्य जल-फलादि वसु द्रव्य संवारें, अर्घ चढ़ायें मंगल गाय| 'बखत रतन' के तुम ही साहिब, दीज्यो शिवपुर-राज कराय || शांतिनाथ पंचम-चक्रेश्वर, द्वादश-मदन तनो पद पाय | तिनके चरण-कमल के पूजे, रोग-शोक-दुःख-दारिद जाय || ओं ह्रीं श्री शांतिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।९।
श्री पार्श्वनाथ जिन का अर्घ्य नीर गंध अक्षतान् पुष्प चारु लीजियै | दीप धूप श्रीफलादि अर्घ तें जजीजिये || पार्श्वनाथ देव सेव आपकी करूँ सदा | दीजिए निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा || ओं ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।९।
श्री महावीर-जिन का अर्घ्य जल-फल वसु सजि हिम-थार, तन-मन मोद धरूं | गुण गाऊँ भवदधितार, पूजत पाप हरूं || श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो | जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो || ओं ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।९।
श्री वर्तमान समुच्चय चौबीसी जिन का अर्घ्य जल-फल आठों शुचिसार, ताको अर्घ करूं | तुमको अरपूं भवतार, भव तरि मोक्ष वरूं ||
चौबीसों श्री जिनचंद, आनंद-कंद सही | पद-जजत हरत भवफंद, पावत मोक्ष मही || ओं ह्रीं श्री ऋषभादि-वीरांते चतुर-विंशति-तीर्थंकरेभ्यो अनर्घ्य पद-प्राप्तये अय॑निर्वपामीति स्वाहा ।९।
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