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चैत्यभक्ति आलोचन चाहूँ कायोत्सर्ग अघनाशन हेत | कृत्रिमा-कृत्रिम तीन लोक में, राजत हैं जिनबिम्ब अनेक || चतुर निकाय के देव जज, ले अष्टद्रव्य निज-भक्ति समेत | निज-शक्ति अनुसार जनूँ मैं, कर समाधि पाऊँ शिव-खेत || ओं ह्रीं त्रिलोकसम्बन्धी समस्त-कृत्रिमाकृत्रिमचैत्यालय-सम्बन्धी जिनबिम्बेभ्यः
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
पूर्व-मध्य-अपराह्न की बेला, पूर्वाचार्यों के अनुसार | देव-वंदना करूँ भाव से, सकल-कर्म की नाशनहार || पंच महागुरु सुमिरन करके, कायोत्सर्ग करूँ सुखकार | सहज स्वभाव शुद्ध लख अपना, जाऊँगा अब मैं भवपार ||
(पुष्पांजलिं क्षेपण कर नौ बार णमोकार मंत्र जपें)
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