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(वेदिका-स्थित सिंहासन पर नया स्वस्तिक बना प्रतिमाजी को विराजित करें व निम्न पद गाकर अर्घ्य चढ़ायें) (Vēdikā - sthita sinhāsana para nayā svastika banā pratimājī ko
virājita karēm va nimna pada gākara arghya carhāyēm)
जल गन्धादिक द्रव्य से, पूर्जे श्री जिनराज |
पूर्ण अर्घ्य अर्पित करूँ, पाऊँ चेतनराज || Jala gandhādika dravya sē, pūjūń śrī jinarāja | Pūrņa arghya arpita karūň , pā’ūň cētanarāja ||
ओं ह्रीं श्री वेदिका-पीठस्थितजिनाय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। Om hrī śrī vēdikā - pīthasthitajināya anarghyapadaprāptayē
arghyaṁ nirvapāmīti svāhā|
नित्य नियम-प्रक्षाल के संबंध में प्रमुख विचारणीय बिन्दु 1. अरिहन्त भगवान का अभिषेक नहीं होता, जिन-बिम्ब का प्रक्षाल किया जाता है,जो अभिषेक के नाम से
प्रचलित है। 2. यह प्रक्षाल केवल 'छानकर गर्म किये गये प्रासुक जल से' शुद्ध वस्त्र पहनकर किया जाए। दैनिक प्रक्षाल जल
के अलावा अन्य द्रव्यों से करना अहिंसा तथा बिम्बों के रक्षण की दृष्टि से हीन कार्य है। 3. प्रक्षाल मात्र पुरुषों द्वारा ही किया जाए। महिलाएं जिनबिम्ब को स्पर्श न करें। उनके द्वारा अभिषेक की केवल
अनुमोदना करना भी उतनी ही मंगलकारी है। 4. जिनबिम्ब का प्रक्षाल प्रतिदिन एक बार हो जाने के पश्चात् बार-बार न करें। यदि बहुत आवश्यक हो जाये, तो
पहिले किये गये अभिषेक-सम्बन्धी पूजन एवं विसर्जन पूर्ण होने के पश्चात् ही दूसरी बार अभिषेक करें।
Nitya niyama-prakşāla kē sambandha mēm pramukha vicāraṇīya
bindu 1. Arihanta bhagavāna kā abhișēka nahīm hūtā, jina-bimba kā prakṣāla
kiyā jātā haijā abhişēka kē nāma sē pracalita hai 2. Yaha prakṣāla kēvala 'chānakara garma kiyē gayē prāsuka jala sē'
sud'dha vastra pahanakara kiyā jā'ē. Dainika prakṣāla jala kē alāvā an’ya dravyām sē karanā ahinsā tathā bimbom kē rakṣaṇa kī drsti sē hīna
kārya hai
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