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________________ भव-सिन्धु पर्यो हूं नाथ, निकारो बाँह-पकर मेरी।। ओं ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।३। कमल केतकी बेला दौना, सुमन सुमन-सेरी। समर-शूल निरमूल-हेतु प्रभु, भेंट करों तेरी।। कुंथु सुन अरज दास-केरी, नाथ सुन अरज दास-केरी। भव-सिन्धु पर्यो हूं नाथ, निकारो बाँह-पकर मेरी।। ओं ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।४। घेवर बावर मोदन मोदक, मृदु उत्तम पेरी। ता सों चरन जजों करुनानिधि, हरो छुधा मेरी।। कुंथु सुन अरज दास-केरी, नाथ सुन अरज दास-केरी। भव-सिन्धु पर्यो हूं नाथ, निकारो बाँह-पकर मेरी।। ओं ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।५। कंचन-दीपमई वर-दीपक, ललित-जोति घेरी। सो ले चरन-जजों भ्रम-तम रवि. निज-सबोध देरी कुंथु सुन अरज दास-केरी, नाथ सुन अरज दास-केरी। भव-सिन्धु पर्यो हूं नाथ, निकारो बाँह-पकर मेरी।। ओं ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय मोहांधकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।६। देवदारु हरि अगर तगर करि चूर अगनि-खेरी। अष्ट-करम ततकाल जरे ज्यों, धूम धनंजेरी।। कुंथु सुन अरज दास-केरी, नाथ सुन अरज दास-केरी। भव-सिन्धु पर्यो हूं नाथ, निकारो बाँह-पकर मेरी।। ओं ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।७/ लोंग-लायची पिस्ता केला, कमरख शुचि लेरी। मोक्ष-महाफल चाखन-कारन, जजू सुकरि ढेरी। कुंथु सुन अरज दास-केरी, नाथ सुन अरज दास-केरी। 554
SR No.009252
Book TitleJin Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages771
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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