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जयमाला
Jayamālā
(दोहा)
आयु सहस- दश वर्ष की, हेम - वरन तन सार । धनुष - पंचदश-तुंग तन, महिमा अपरम्पार | १ | जय-जय-जय नमिनाथ कृपाला, अरि-कुल- गहन-दहन दव-ज्वाला । जय-जय धरम- पयोधर धीरा, जय भव-भंजन गुन- गंभीरा |२| जय-जय परमानंद गुनधारी, विश्व-विलोकन जन - हितकारी । अशरन-शरन उदार जिनेशा, जय-जय समवसरन आवेशा | ३ | जय-जय केवलज्ञान प्रकाशी, जय चतुरानन हनि भव-फाँसी । त्रिभुवन उद्यम-वंता, जय जय जय जय नमि भगवंता |४| सप्त तत्त्व दरशायो, तास सुनत भवि निज-रस पायो । एक शुद्ध-अनुभव निज भाखे, दो विधि राग-दोष छै आखे |५| दो श्रेणी दो नय दो धर्मं, दो प्रमाण आगम-गुन शर्मं । तीन लोक त्रयजोग तिकालं, सल्ल पल्ल त्रय वात बलालं | ६ | चार बंध संज्ञा गति ध्यानं, आराधन निछेप चउ दानं ।
पंचलब्धि आचार प्रमादं, बंध हेतु पैंताले सादं ॥७॥ गोलक पंचभाव शिव-भौनें, छहों दरब सम्यक् अनुकौने । हानि - वृद्धि तप समय समेता, सप्तभंग-वानी के नेता | ८ | संयम समुद्धात भय सारा, आठ करम मद सिध गुन-धारा । नवों लब्धि नव-तत्त्व प्रकाशे, नोकषाय हरि तूप हुलाशे । ९ ।
दश बंध के मूल नशा, यों इन आदि सकल दरशाये । फेर विहरि जग-जन उद्धारे, जय-जय ज्ञान-दरश अविकारे । १० । जय वीरज जय सूक्षमवंता, जय अवगाहन- गुण वरनंता । जय-जय अगुरुलघू निरबाधा, इन गुन-जुत तुम शिवसुख साधा | ११ | ता कों कहत थके गनधारी, तौ को समरथ कहे प्रचारी । ता तें मैं अब शरने आया, भव-दुःख मेटि देहु शिवराया |१२|
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