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sahita vāpasa rakhēm aura kāyātsarga kara bhandāra kē pața banda karem.
Cāvala ādi kē dānē parē raha jānē sē pūjā pustakom/bhandāra mēm jīvānu va cūhāṁ kī sambhāvanā hūtī hail atah bhalī bhānti dēkha bhāla
kara sāvadhānī sē sud'dha pūjā pustakēm uthā'ēm ēvam rakhēm asāvadhānī vaśa, una mēs kabhī kabhī aśuddha pustakādi an'ya sāhitya bhī rakhē dēkhanē mēm ātē haim bhanļāra kī niyamita jāñca va jhādapāñcha bhī pājana kā anga hai ghara sē pājana kē li’ē ātē samaya pūjā
sāmagrī kē sātha ēka pēna aura dāyarī avaśya lā'ēm, abhişēka-pūjana kriyā kē daurāna upajē praśna/sankā va sujhāva nõța kara, samadhāna kā
udyama karana parinama-visud'dhi vardhaka hota hai.
जैन दर्शन का उद्देश्य (Aim of Jain Philosophy)
जैन-दर्शन का उद्देश्य है निर्वाण अर्थात् मोक्ष । निर्वाण समस्त कर्मों के नष्ट होने से मिलता है। • कर्म सर्व-विरति (समस्त पाप-पुण्यों से छूटना) से नष्ट होते हैं। सर्व-विरति चारित्र-मोहनीय कर्म प्रकृति के
नष्ट होने का परिणाम है।
प्राणी मात्र का लक्ष्य यह होना चाहिए कि वह सर्व-विरत बने और मोक्ष की राह में अग्रसर हो। . किन्तु हमारी आत्मा चारित्र-मोहनीय कर्म का उदय रहते सर्व-विरत नहीं हो पाती। • इस अशक्यता की दशा में यथाशक्य विरति का विधान है। कहा भी गया है, “कीजे शक्ति प्रमाण, शक्ति
बिना, श्रध्दा धरें” अर्थात् सम्यक्-दृष्टि बनने में रत रहें। • अनन्तानुबन्धी मोह के उदय वश, जो सम्यक्-दृष्टि भी नहीं बन सकते, उनके लिए निर्जरा अर्थात् तपस्या
का मार्ग खुला रहता है। निर्जरा-तप, सम्यक्-दृष्टित्व और विरति ; ये मोक्ष के साधन हैं। • निर्जरा मोक्ष का साधन है पर केवल निर्जरा से मुक्ति नहीं होती, दृष्टि भी सम्यक् होनी चाहिए। • चारित्र के बिना इन दोनों से भी मुक्ति नहीं होती। तीनों- सम्यक्-दृष्टि, निर्जरा और विरति एक साथ होते
हैं, तब आत्मा कर्ममुक्त होती है। • जो मुनि कैवल्य प्राप्त नहीं करता, वह मुक्त नहीं होता। जो सर्व-विरत नहीं बनता, वह वीतराग नहीं बनता।
जो वीतराग नहीं बनता, वह कैवल्य प्राप्त नहीं करता। इसलिए जो मुनि व्रत-पालन करते-करते वीतराग बन केवली बन जाते हैं, वे ही मुक्त होते हैं|
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