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________________ वैडूर्यमणि-पर्वत मानों नील-कुलाचल-सम थिर जान ||२|| तेजवंत परमाणु जगत में तिन करि रच्यो शरीर प्रमाण | सत वीरत्व गुणाकर जाको निरखत हरि हरषो उर आन || धीरज अतुल वज्र-सम नीरज वीराग्रणी सम अति-बलवान | जिन छवि लखि मनु शशि-रवि लाजे कुसुमायुध लीनों सुपुमान ||३|| बालसमय जिन बाल-चन्द्रमा शशि से अधिक धरे दुतिसार | जो गुरुदेव पढ़ाई विद्या शस्त्र-शास्त्र सब पढ़ी अपार || ऋषभदेव ने पोदनपुर के नृप कीने बाहुबली कुमार | दई अयोध्या भरतेश्वर को आप बने प्रभुजी अनगार ||४|| राज-काज षट्खंड-महीपति सब दल लै चढ़ि आये आप | बाहुबली भी सन्मुख आये मंत्रिन तीन युद्ध दिय थाप || दृष्टि नीर अरु मल्ल-युद्ध में दोनों नृप कीजो बलधाप | वृथा हानि रुक जाय सैन्य की या लड़िये आपों आप ||५|| भरत बाहुबली भूपति भाई उतरे समर-भूमि में जाय | दृष्टि-नीर-रण थके चक्रपति मल्लयुद्ध तब करो अघाय || पगतल चलत चलत अचला तब कंपत अचल-शिखर ठहराय | निषध नील अचलाधर मानो भये चलाचल क्रोध-बसाय ||६|| भुज-विक्रमबली बाहुबली ने लिये चक्रपति अधर उठाय | चक्र चलायो चक्रपति तब सो भी विफल भयो तिहि ठाय || अतिप्रचंड भुजदंड सूंड-सम नृप-शार्दूल बाहुबलि-राय | सिंहासन मँगवाय जास पे अग्रज को दीनों पधराय ||७|| राज रमा दामासर धनमय जीवन दमक-दामिनी जान | भोग भुजंग-जंग-सम जग को जान त्याग कीनों तिहि थान || अष्टापद पर जाय वीर नृप वीर व्रती धर लीनों ध्यान | अचल-अंग निरभंग संग-तज संवत्सर लों एक ही थान ||८|| विषधर बांबी करी चरनन-तल ऊपर बेल चढ़ी अनिवार | युगजंघा कटि बाहु बेढ़िकर पहुँची वक्षस्थल पर सार || सिर के केश बढ़े जिस माँही नभचर-पक्षी बसे अपार | धन्य-धन्य इस अचल-ध्यान को महिमा सुर गावें उर-धार ||९|| 314
SR No.009252
Book TitleJin Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages771
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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