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ओं ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा। õm hrīm śrīmahāvīrajinēndrāya jayamālā-pārņārghyam nirvapāmīti
svāhā
(दोहा) अष्टकर्म के दहन को, पूजा रची विशाल | पढ़े सुनें जो भाव से, छूटें जग-जंजाल ||१|| संवत् जिन चौबीस सौ, है बांसठ को साल | एकादश कार्तिक वदी, पूजा रची सम्हाल ||२||
(Doha) Astakarma kē dahana ko, pūjā racī viśāla | Pashē sunēm jā bhāva sē, chūtēm jaga-jañjāla || Sanvat jina caubīsa sau, hai bānsaţha kā sāla |
Ēkādaśa kārtika vadī, pūjā racī samhāla ||
।इत्याशीर्वादः पुष्पांजलिं क्षिपेत्।। || Ityāśīrvāda: Puspāñjalim kşipēt ||
आचार्यप्रवर श्री कुंदकुंद स्वामी पूजन Acāryapravara Sri
Kundakunda Svāmī Pūjan
(नरेंद्र छंद) मूलसंघ को दृढ़तापूर्वक, किया जिन्होंने रक्षित है | कुंदकुंद आचार्य गुरु वे, जिनशासन में वन्दित हैं || काल-चतुर्थ के अंतिम-मंगल, महावीर-गौतम गणधर | पंचम में प्रथम महामंगल, श्री कुंदकुंद स्वामी गुरुवर ||
उन महागुरु के चरणों में, अपना शीश झुकाता हूँ |
आह्वानन करके त्रियोग से, निज-मन में पधराता हूँ || ओं ह्रीं श्रीकुंदकुंदाचार्यस्वामिन् ! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (आह्वाननम्)
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