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अर्थ-हे भगवन्! मैं चैत्य-भक्ति और कायोत्सर्ग करते हुए उन में लगे दोषों की आलोचना करना चाहता हूँ। अधोलोक, मध्यलोक और ऊर्ध्वलोक में जितनी कृत्रिम और अकृत्रिम जिन - प्रतिमाएँ हैं, उन सबकी भवनवासी, व्यंतर, , ज्योतिष और कल्पवासी चारों निकाय के देव अपने परिवार सहित दिव्य (स्वर्ग में होने वाली) गंध से, दिव्य पुष्प से, दिव्य धूप से, (पंच प्रकार) के दिव्य चूर्ण से, दिव्य सुगंधित द्रव्य से, दिव्य अभिषेक से हमेशा अर्चना करते हैं, पूजा करते हैं, वन्दना करते हैं, नमस्कार करते हैं। मैं भी यहीं से वहाँ स्थित सभी प्रतिमाओं की हमेशा अर्चना करता हूँ, पूजा करता हूँ, वंदना करता हूँ, नमस्कार करता हूँ। मेरे दुःख क्षय हों, कर्म क्षय हों, बोधि (ज्ञान अथवा रत्नत्रय का) लाभ हो, सुगति में गमन हो, समाधि-मरण हो तथा जिनेन्द्र भगवान् की गुणरूपी सम्पत्ति मिले।
Artha-hē bhagavan! Maim caitya-bhakti aura kāyātsarga karatē hu’ē una mēm lagē dōṣōm kī ālōcanā karanā cāhatā hūṁ. Adhōlōka, madhyalōka aura ūrdhvalōka mēṁ jitanī kṛtrima aura akṛtrima jinapratimā❜ēm haim, una sabakī bhavanavāsī, vyantara, jyōtiṣa aura kalpavāsī cārōm nikāya kē dēva apanē parivāra-sahita divya (svarga mēm hōnē vālī)gandha se, divya puspa sē, divya dhūpa sē, (pañca prakāra) kē divya cūrṇa sē, divya sugandhita dravya sẽ, divya abhiṣēka sē hamēśā arcanā karatē haiṁ, pūjā karatē haiṁ, vandanā karatē haim, namaskāra karatē haiṁ. Maiṁ bhī yahīṁ sẽ vahāṁ sthita sabhī pratimā❜ōṁ kī hamēśā arcanā karatā hūṁ, pūjā karatā hūṁ, vandanā karatā hūm, namaskāra karatā hūm. Mere du: Kha ksaya hōm, karma kṣaya hōm, bōdhi (jñāna athavā ratnatraya kā) lābha hō, sugati mēm gamana hō, samādhi-maraṇa hō tatha jinēndra bhagavān kī guṇarūpī sampatti milē
(इसप्रकार आशीर्वादरूप पुष्पांजलिं क्षेपण करें)
(Isa prakāra āśīrvādarūpa puṣpāñjaliṁ kṣēpaṇa karēm)
(समस्त कर्मों का क्षय करने के लिए मैं प्रातः कालीन, मध्याह्नकालीन तथा सायंकालीन देववंदना में पूर्वाचार्यों के अनुसार भावपूजा, , वंदना तथा स्तुति के द्वारा पंच-परमेष्ठियों की भक्ति तथा कायोत्सर्ग (परिणामों की शुद्धता हेतु आसन, निश्चलता आदि से शरीर को तप्त) करता हूँ।)
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