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________________ श्रीशान्तिनाथ जिन-पूजा (रचयिता - श्री राजमल जी) अविनश्वर अनुपम अनर्घ-पद सिद्ध-स्वरूप महा-सुखकार। मोक्ष-भवन निर्माता निज-चैतन्य राग-नाशक अघ-हार।। परम-शान्ति-सुख-दायक शान्ति-विधायक शान्तिनाथ भगवान। शाश्वत-सुख की मुझे प्राप्ति हो श्री जिनवर दो यह वरदान।। ऊँ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अनध्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।। श्री मुनिसुव्रतनाथ जिन-पूजा (केशवराय पाटन) (रचयिता - पं0 दीपचन्द) जल गंधाक्षत पुष्प से पूजों प्रभु पद-कंजा चरु सुदीप धूपादि फल अग्र धरूँ अघ-भंज।। ॐ ह्रीं श्रीआशरम्यपट्टणपुरस्थ-श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। श्री मुनिसुव्रतनाथ जिन-पूजा (पैठण) (रचयिता - रतन लाल पहाडे) जल फल वसु द्रव्य मिलाय, अर्घ चढ़ावत हूँ। शिवपद मिलने के काज, तुम गुण गावत हूँ।। श्री मुनिसुव्रत भगवान, भदवधि पार करो। मन-वच-तन पूजूं आज, संकट दूर करो।। ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अनध्यपद-प्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। 70
SR No.009251
Book TitleJin Samasta Ardhyavali Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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