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श्री सुपार्श्वनाथ जिन
आप ही मोक्षलक्ष्मी के स्वामी महा भव से तारो मुझे मैं व्यथित हूँ यहाँ ।। आज भावों से पूजा करूँगा प्रभो। अर्चना से जिनेश्वर बनूँगा विभो ॥॥॥
ऊँ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
श्री चन्द्रपभ जिन
आप ही मोक्षलक्ष्मी के स्वामी महा
हम दास तिहारे, आये द्वारे, सिद्धक्षेत्र में बस जायें। पद अर्घ्य चढ़ाये, शरणे आये, चन्द्रप्रभ सम बन जायें ।। अष्टम तीर्थंकर, घाति क्षयंकर, भव्य हितंकर जिनराई ।
मैं पूजूँ ध्याऊ, श्री गुण गाऊँ, श्री चन्द्रप्रभ सुखदाई ॥॥॥ ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यनिर्वपामीति स्वाहा।
श्री सुपार्श्वनाथ जिन
आप ही मोक्षलक्ष्मी के स्वामी महा भव से तारो मुझे मैं व्यथित हूँ यहाँ ।। आज भावों से पूजा करूँगा प्रभो।
अर्चना से जिनेश्वर बनूँगा विभो।।।।
ऊँ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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