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श्री शान्तिनाथ जिन आठों द्रव्यों कीजिये एक ठाहीं। लेके अध्य भाव के नाथ माँही।। कीजे पूजा शान्ति स्वामी सु तेरी, जासों नासे कालिमा काल केरी।। ओं ह्रीं श्री शान्तिनाथजिनेन्द्राय अनध्य पद प्राप्तये अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
श्री कुन्थुनाथ जिन जल चन्दन अक्षत पहुप, चरु वर दीपक आनि।
धूप और फल मेलि के, अध्य चढ़ाऊँ जानि।। ओं ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय अनध्य पद प्राप्तये अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
श्री अरहनाथ जिन जल चन्दन वर अक्षत पुहुप सुधारिके, नानाविध चरु दीपक धूप प्रजारिके।। फल सु मिष्ट ले सुन्दर अध्य बनाइये, अरहनाथ पद ऊपर नित्य चढ़ाइये।। ओं ह्रीं श्री अरहनाथजिनेन्द्राय अनध्य पद प्राप्तये अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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