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________________ श्री विमलनाथ जिन सलिल गन्ध सुतन्दुल पुष्पकं, चरु सुदीप सुधूप फलौघकं। परम-मुक्ति-सुथान-विधायकं, परिजजे विमलं चरणाब्जकं।। ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।। श्री अनन्तनाथ जिन सलिल शीत अति स्वच्छ मिष्ट चंदन मलयागर। तन्दुल सोम-समान पुष्प सुरतरु के ला वर।। चरु-उत्तम अति मिष्ट पुष्ट रसना-मन-भावन। मणि-दीपक तमहरण धूप कृष्णागर-पावन।। लहि फल उत्तम कनकथाल भरि, अरघ रामचन्द इम करे। श्री अनन्तनाथ के चरण-जुग, वसुविधि अरचे शिव वरै।। ॐ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। श्री धर्मनाथ जिन जल गन्धाक्षत पुष्प दीप चरु धूप मिलावै। अर्घ रामचन्द करै नेमि फल शिव-सुख पावै।। जनम-मृत्यु-आताप दुरित-दारित दुख-खण्डन। जर्जे चरण धरि भक्ति धर्म जिन शिव के मण्डन। ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। 40
SR No.009251
Book TitleJin Samasta Ardhyavali Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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