________________
श्री शीतलनाथ जिन नीर गन्ध सुगन्ध तन्दुल, पुष्प अरु अति दीप ही। करि अर्घ धूप समेत फल ले, रामचन्द्र अनूप ही।। भवि पूजि शीतलनाथ जिनवर, नशें भव के ताप ही।
आतंक जाय पलाय शिव-तिय, होय सनमुख आप ही।। ऊँ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
श्री श्रेयांसनाथ जिन सलिल गन्ध सु तन्दुल पुष्पकं, चरु सु दीप सु धूप फलौघकं।
परम-मुक्ति सुथान-प्रदायकं, परिजजे श्रेयांस-पदाब्जकं।। ऊँ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
श्री वासुपूज्य जिन अति निर्मल नीरं, गन्ध गहीरं, तन्दुल पुष्पं सु चरु लावें। पुनि दीपं धूपं, फल सु अनूपं, अर्घ रामकरि गुण गावें।।
चम्पापुर थानं, शुभ-कल्यानं, वासुपूज्य जिनराज वरं। वसुविधि करि अरच, भव-दुख विरचै, परचै सब सुख तार घरं।। ऊँ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
39