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श्री पंचमेरु आठ दरबमय अरघ बनाय, ‘द्यानत' पूजू श्रीजिनराय |
महासुख होय, देखे नाथ परमसुख होय || पाँचों मेरु अस्सी जिनधाम, सब प्रतिमाजी को करूँ प्रणाम |
महासुख होय, देखे नाथ परमसुख होय || ओं ह्रीं श्रीपंचमेरुसम्बन्धिअस्सी जिनचैत्यालयस्थ-जिनबिम्बेभ्यः
अनर्घ्य पद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।
श्री नंदीश्वर-द्वीप यह अरघ कियो निज हेत, तुमको अरपतु हूँ | 'द्यानत' कीज्यो शिव खेत भूमि समरपतु हूँ ||
नंदीश्वर श्रीजिन धाम, बावन पूज करूं | वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरूं || ओं ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपे पूर्व-दक्षिण-पश्चिम-उत्तरदिक्षु
द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्यः अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
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