SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महा मोक्ष कल्याण आपका, नमूँ जोड़कर हाथ प्रभो । और नहीं कुछ मुझे चाहिये, रहूँ आपके साथ प्रभो।। फाल्गुन शुक्ल सप्तमी के दिन, ललित कूट से मुक्त हुये। कर्म नष्ट कर सिद्धक्षेत्र में, मुक्तिरमा से युक्त हुये॥5॥ ऊँ हीं फाल्गुनशुक्लसप्तम्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। जाप्य ऊँ हीं अर्हं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय नमो नमः । जयमाला ज्ञानोदय छंद वीतराग अरहंत प्रभु को, मन वच तन से करूँ प्रणाम। अनंत चतुष्टय के धारी हैं, करते हैं, भविजन कल्याण।। भावों से भरकर करते हैं, आज प्रभु का हम गुणगान। चिंतामणि श्री चन्द्रप्रभ जी, करते सब कर्मों की हा ॥ 1 ॥ चन्द्रपुरी के महासेन नृप, हुए यशस्वी अति गुणवान। उनकी प्रिय रानी के उर से, जन्मे तीर्थंकर भगवान ।। जन्म हुआ जब प्रभु आपका, देवों ने जयगान किया। प्रभु के तन को देख सभी ने, निज चेतन को जान लिया ||2| राज पाट में न्याय नीति से, यौवन में में जब लीनहुये। किंतु स्व-पर का भेद जानकर, सिंहासन आसीन हुये ।। देख चमकती बिजली तत्क्षण, नष्ट हुई तो किया विचार। सारा जग क्षणभंगुर माया, वस्त्राभूषण लिये उतार ॥ 3 ॥ तीन माह तक मौन रहे और, कठिन तपस्या की जिनवर। द्वादश तप के ही प्रभाव से, कर्म निर्जरा की प्रभुवर।। सप्तम गुणथानक में पहुँचे, आत्म तत्त्व का करके ध्यान। चार घातिया क्षय करते ही, प्रभु ने पाया केवलज्ञान॥4॥ 59
SR No.009250
Book TitleJin Pujan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy