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पंचकल्याणक
ज्ञानोदय छंद गर्भ दिवस पर मात लक्ष्मणा, देखे सोलह स्वप्न महान। चौत्र कृष्ण पंचमी को त्यागा, वैजयंत का महा विमान।। चंद्र कांति सम चन्द्रप्रभ की, महिमा वृहस्पति गाते।
रत्नों की बौछार हो रही, सुर नरपति भी हर्षाते।।1।। ऊँ ही चौत्रकृष्णपंचम्यां गर्भमंगलमंडिताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
पौष कृष्ण एकादशी को नृप, महासेन घर जन्म लिया। मेरु सुदर्शन पर ले जाकर, जिन बालक का न्हवन किया।। प्रभु के जन्म कल्याणक को लख, छाया हर्ष अपार हैं
चन्द्रपुरी में गूंज रहें हैं, घर-घर मंगलाचार है।।2। ऊँ ही पौषकृष्णएकादश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
प्रभुवर के तप कल्याणक की, महिमा वच से कही न जाय। संयम तप वैरागय का उतसव, करके सुर नर मुनि हर्षाय।।
वस्त्राभूषण त्याग दिये सब, पंच महाव्रत धार लिया।
जन्म दिवस के दिन ही प्रभु ने, संयम से अनुराग किया।।3।। ऊँ ही पौषकृष्णएकादश्यां तपोमंगलमंडिताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
तीन माह छद्मस्थ रहे प्रभु, निज आतम में होकर लीन। फाल्गुन कृष्ण सप्तमी के दिन, केवलज्ञान हुआ स्वाधीन।।
पूर्णज्ञान है कल्पवृक्ष सम, भविजन मनवांछित पाते।
समवसरण में सुर नर पशु आ,सम्यग्दर्शन पा जाते।।4।। ॐ हीं फाल्गुनकृष्णसप्तम्यां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
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