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प्रभु भवदधि पारण, शांति विधायक, भवि शिव मारग कारक हो। तव धुनि हितकारी, शीतल कारी, भवाताप के हारक हो।।
अष्टम तीर्थंकर, घाति क्षयंकर, भव्य हितंकर जिनराई।
मैं पूर्टो ध्याऊ, श्री गुण गाऊँ, श्री चन्द्रप्रभ सुखदाई।।2।। ऊँ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
सारा जग नश्वर, प्रभु विनश्वर, भवि रक्षक हो त्रिभुवन में। अक्षय पद देना, राह दिखाना, भटक गए हैं भव वन में।।
अष्टम तीर्थंकर, घाति क्षयंकर, भव्य हितंकर जिनराई।
मैं पूनँ ध्याऊ, श्री गुण गाऊँ, श्री चन्द्रप्रभ सुखदाई।।3।। ऊँ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
प्रभु विषय विरत हो, आत्म निरत हो, ब्रह्माचर्य व्रत अतिशायी। मम काम नशा दो, आतम बल दो, कामशूर है बलशाली।।
अष्टम तीर्थंकर, घाति क्षयंकर, भव्य हितंकर जिनराई।
मैं पूजूं ध्याऊ, श्री गुण गाऊँ, श्री चन्द्रप्रभ सुखदाई।।4।। ऊँ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
प्रभु आप निराकुल, मैं हूँ व्याकुल, क्षुधा रोग का रोगी हूँ। प्रभु परम वैद्य हो, क्षुधा ध्वंस हो, कर्म फलों का भोगी हूँ।।
अष्टम तीर्थंकर, घाति क्षयंकर, भव्य हितंकर जिनराई।
मैं पूजूं ध्याऊ, श्री गुण गाऊँ, श्री चन्द्रप्रभ सुखदाई।।5।। ऊँ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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