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श्री चन्द्रपभ जिन पूजन
स्थापना
__ज्ञानोदय छंद मुझमें इतनी शक्ति नहीं है, कैसे नाथ पुकारूँ मैं। मेरे मन मंदिर आवो या , भावों से आ जाऊँ मैं।। जैसा प्रभुवर आप कहोगे, वैसा मुझको करना है। लक्ष्य यही है चन्द्रप्रभ जी, भवसागर से तरना है।। भक्त अकेला तड़फ रहा है, विरह वेदना सुन लेना।
आह्वानन करता हूँ स्वामी, देहालय में आ जाना।। ऊँ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्।
ऊँ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्र !अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्र !अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
द्रव्यार्पण
त्रिभंगी छंद प्रासुक जल लाया, चरण चढ़ाया, मन निर्मल ना कर पाया। तन का मल धोया, मन ना धोया, बुझी न जवाला शरणाया।।
अष्टम तीर्थंकर, घाति क्षयंकर, भव्य हितंकर जिनराई। __ मैं पूजूं ध्याऊ, श्री गुण गाऊँ, श्री चन्द्रप्रभ सुखदाई।।1।। ऊँ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय जन्म जरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
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