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महा भयानक भव सागर से, उसको पार लगाया है।।
तेरे उद्धारक चरणों पर,नाथ मेरी बलिहारी है। वीतराग सर्वज्ञ हितंकर, “पूर्ण ज्ञान के धारी हैं ।।6।।
दोहा
यद्यपि दोष का कोष हूँ, अज्ञानी हूँ नाथ। फिर भी भक्ति प्रबल है, चरण नमाऊँ माथ।।7।।
ॐ हीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णायू निर्वपामीति स्वाहा।
घत्ता
हेसुपार्श्व स्वामी, अंतर्यामी, भव-भव का संताप हरो। निज पूज रचाऊँ, ध्यान लगाऊँ, “विद्यासागर पूर्ण’ करो।।
॥ इत्याशीर्वादः।
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