________________ वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा। आ गया हँ शरण दीजिये आसरा॥30॥ ऊँ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा। घत्ता अंतिम तीर्थेशा, वीर जिनेशा, भव-भव का संताप हरो। नित पूज रचाऊँ, ध्यान लगाऊँ, 'विद्यासागर पूर्ण' हो।। // इत्याशीर्वादः॥ 188