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मार्ग आपने जो बतलाया, मेरे मन को भया है। मुझको भी भव पार करो, यह भक्त शरण में आया है।।10।
श्री सम्मेदाचल से स्वामी, मोक्ष महापद है पाया। चरण चिह्न का दर्शन करके, शिवपद पाने मैं आया।।
पार्श्व तीर्थंकर सर्व प्रियंकर, श्री चरणों में सिरनाया। दिव्य शक्ति को संचित करने, आप शरण में हूँ आया।।11।
दोहा परं ज्योति परमातमा, पार्श्वनाथ जिनराज।
वंदौ परमानंद मय, आत्मशुद्धि के काज।।12।। ऊँ ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
घत्ता
जय-जय तीर्थंकर, पार्श्वनाथ जिनेश्वर, भव-भव का संताप हरो। नित पूज रचाऊँ, ध्यान लगाऊँ, 'विद्यासागर पूर्ण' हरो।।
॥ इत्याशीर्वादः॥
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