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अहंकार से दग्ध हुआ हूँ, अंतर में ही जलता। कृपा दृष्टि जब हुई प्रभु की, उसी कृपा पर पलता।।
नेमिनाथ तीर्थंकर स्वामी, चेतन गृह में आना।
भवाताप में झुलस रहा हूँ, मुझको आन बचाना।।2।। ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
उज्ज्वल धवल भवन के वासी, धवल आपका जीवन।
नश्वर से संबंध नहीं प्रभु, रहते हो निज उपावन।
नेमिनाथ तीर्थंकर स्वामी, चेतन गृह में आना।
अक्षय पद का पथ नहीं जाना, मुझको नाथ बताना।।3।। ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
भक्ति भाव के पुष्प मनोहर, श्री चरणों में अर्पित। इंद्रिय मन की विषय वासना, प्रभुवर आज विसर्जित।।
नेमिनाथ तीर्थंकर स्वामी, चेतन गृह में आना।
संयम से सुरभित हो जीवन, निज का दर्श दिखाना।।4।। ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
क्षुधा रोग को दूर करो प्रभु, यही हृदय को भया। करुणा सागर सरल स्वभावी, वैद्य समझकर आया।।
नेमिनाथ तीर्थंकर स्वामी, चेतन गृह में आना।
समता रस का पान कराकर, क्षुधा व्याधि को हरना।।5।। ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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