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पंचकल्याणक
तर्ज -कर लो जिनवर का गुणगान देव मनाये गर्भ कल्याण, आई शुभ की घड़ी। आई शुभ की घड़ी, देखो मंगल घड़ी....॥ अपराजित अनुत्तर छोड़ा, मिथिलापुर में आये। निद्रा में शुभ स्वप्न देख, माँ प्रभावती सुख पाये।।
सुरपति करें गुणगान, चैत्र सुदी एकम् है महान | करलो जिनवर का गुणगान, आई शुभ की घड़ी || 1 ।।
ऊँ ह्रीं चैत्रशुक्लप्रतिपदायां गर्भमंगलमंडिताय श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अग्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मगसिर सुदी एकादशमी को कुंभराज गृह आये। जन्मोत्सव में मंगल उत्सव, गा अभिषेक कराये ॥
देव मनाये जन्म कल्याण, ले गये पाण्डुक शिला महान ।
करलो जिनवर का गुणगान, आई जन्म की घड़ी||2|
ऊँ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्लएकाश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जन्मोत्सव के समय प्रभु ने, विद्युत अस्थिर देखा। जयंत पालकी में लेकर, सुर दल शालीवान पहुँचा।। देव मनाये तप कल्याण, करने चले आत्म कल्याण।
करलो जिनवर का गुणगान, आई तप की घड़ी || 3 |
ऊँ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्लएकादश्यां तपोमंगलमंडिताय श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अत्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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