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पूजा करे विनय से अरहनाथ आपकी । हो पूर्ण मनोकामना उस भक्त के मन की ।। शंकादि दोशटारके समदर्श को पाता । वो आठ अंग धारता निज ज्ञान को पाता ॥ 5॥ तेरह प्रकार के चरित्र धार वो लेते। शुद्धोपयोगी होय मुनि आत्म को ध्या।। वे ग्रीष्मकाल में गिरि शिखरों पे रहे हैं। वर्षा ऋतु में तरु तले परीषह को सहे हैं॥6॥
हेमंत काल में मुनि बाहर शयन करें। द्वादश प्रकार तप तपे मुनि को मन करें || उपवास वास करते निज में रहें मुनीश । चऊँ घाति घात करके पद पा गये हैं ईश || 7 | रचना हुई समवसरण सब ताप अघहरा। है तीस जिसमें श्री कुंथुमुख्य गणधरा।। हे नाथ आपका सुयश सुना मैं आ गया। मैं भी बनूँ परमात्माये मन को भा गया ॥ 8 ॥
अज्ञान मान वश यदि जो दोष हैं हुये। हे नाथ माफ कीजिये तुम हो दया निधे।। अरनाथ आपके चरण को नित्य मैं नमूँ। धर ध्यान प्रभु भव-सिंधु से तरूं ॥ 9 ॥
दोहा
मीन चिन्ह युत है चरण, वंदन बारम्बार। भावों सेदर्शन करूँ, हो जाऊँ भव पार ॥ 10 ॥
ऊँ ह्रीं श्री अरनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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