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________________ चैत्र अमावस्या को स्वामी, नाटक कूट निर्वाणलिया। एक सहस मुनिनाथ साथ में, सम्मेदाचल धन्य किया।। अव्याबाध सुखी होकर प्रभु, देह रहित स्वाधीनहुये। पंचमगति को पाने हेतु, तव चरणों में लीन हुये।।5।। ऊँ ह्रीं चैत्रकृष्ण अमावस्यायां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीअरनाथजिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा। जाप्य ॐ ह्रीं अर्ह श्रीअरनाथजिनेन्द्राय नमो नमः।' जयमाला दोहा अरहनाथ भगवान को, मैं पूनँ धर ध्यान। आप भक्ति की शक्ति से, करूँ आत्म कल्याण।।1॥ चाल - शेर अरनाथ आपके चरण को नित्य मैं नमूं। धर ध्यान आपका प्रभु भव सिंधु से तरूँ।। देवाधिदेव अरहनाथ आपको नमूं। हे सातवें चक्रेश मुनिनाथ को नम।।2।। हे वर्तमान तीर्थनाथ आपको नमूं। हो कामदेव चौदहवें जिन आपको नम।। सौधर्म इंद्र आपके चरणों में है नमे। गणधर मुनीन्द्र आपकी भक्ति में रमे।।3।। जो नित्य प्रभु आपके दर्शन को है पाता। वो पाप नाश करके शीघ्र मोक्ष है पाता।। हे नाथ भक्ति आपकी मन से करे सदा। उसको न विघ्न व्याधियाँ सताती हैं कदा।।4।। 144
SR No.009250
Book TitleJin Pujan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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