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जयमाला दोहा
धर्मनाथ तीर्थेश के, गुण है नंतानंत गुणमाला कंठे धरे, होता भव का अंत ॥1॥
चौपाई धर्मनाथ जिनवर को वंदू{, धर्म विधायक विभुवर वंदूँ। भानुराज सुत को अभिनंदूँ, मात सुव्रता नंदन वंदूँ॥2॥
चार ध्यान उपदेशक वंदूँ, धमध्यान आराधकवंदूँ। शुक्लध्यान के धारक वंदूँ, प्राणिमात्र उपकारकवंदूँ।।3।।
कूट सुदत्त अधीश्वर वंदूँ, सिद्धालय के वासीवंदूं। कर्म अरिंजय स्वामीवंदूँ, मृत्युजंय अभिनामी वंदूँ||4| चिन्मय चिदानंद जिन वंदूँ, परमानंद जिनेश्वर वंदूं। परम शांत मूरत अभिवंदूँ। महापूज्य त्रिपुरारि वंदूँ।।5।। पंचम गति के दायक वंदूँ, इंद्रिय रहित जिनेश्वर वंदूं। काय रहित निष्कायकवंदूँ, योग रहित योगीश्वर वंदूँ।।6। वेद रहित जिन लिंगी वंदूँ, रहित कषाय जिनेश्वर वंदूं । ज्ञानी परम संयमी वंदूँ,केवलदर्शी जिन को वंदूँ | | 7 ॥ लेश्यातीत भाव को वंदूँ, भव्यातीत दशा को वंदूं क्षायिक समकित जिन को वंदूँ, सैनी रहित मार्गणा वंदूं ॥ 8 ॥ सदा अनाहारी प्रभु वंदूँ, ज्ञान शरीरी जिनवर दूँ पंद्रहवें तीर्थेश्वर वंदूँ, धर्मनाथ अखिलेश्वर वंदूं || 9 ||
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