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पंचकल्याणक
सखी छंद सर्वार्थसिद्धि तज आये,सुरबाला मंगल गाये।
तेरस वैशाख वदी है, माँ सुव्रता उर हर्षी है।।1। ऊँ ही वैशाखकृष्णत्रयोदश्यां गर्भमंगलमंडिताय ऊँ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
सुद माघ त्रयोदशि आयी, प्रभु जन्मोतसव सुखदायी।
नृप भानुराज हर्षाये, तीर्थंकर सुत को पाये।।2।। ऊँ हीं माघशुक्लत्रयोदश्यां जन्ममंगलमंडिताय ऊँ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।
जब जन्मोत्सव खुशियाँ थी, तब उल्कापात हुयी थी।
वैराग्य धरे जिनराजा, एक लाख संग मुनिराजा ।।3।। ऊँ हींमाघशुक्लत्रयोदश्यां तपोमंगलमंडिताय ऊँ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्रायअर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
जब पौष पूर्णिमा आयी, प्रभु केवलज्ञान उपायी।
प्रभु राजे हैं पद्मासन, है दिव्य आपका शासन।।4।। ॐ हीं पौषशुक्लपूर्णिमायां केवलज्ञानप्राप्ताय ऊँ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
सुदि ज्येष्ठ चतुर्थी आयी, शिरमा वरी जिनरायी।
सूदत्त कूट मन भाया, सम्मेद शिखर सिर नाया।।5।। ऊँ ही ज्येष्ठशुक्लचतु,यां मोक्षमंगलमंडिताय ऊँ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
जाप्य ॐ हीं अहँ श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय नमो नमः।
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