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ज्ञान भानु का उदय हुआ प्रभो तुम्हें। दिखता नहीं अज्ञान अंधकार में हमें।।
अनंत ज्ञान हेतु नाथ प्रार्थना करूँ।
ज्ञान के प्रकाश हेतु अर्चना करूँ॥6॥ ऊँ ह्रीं श्रीअनंतनाथ जिनेन्द्राय मोहांधकारविनाशाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
द्रव्य कर्म भाव कर्म नाश कर दिये। ध्यान लीन हो गये निज दर्श पा लिये।।
अनंत ज्ञान हेतु नाथ प्रार्थना करूँ।
अष्ट कर्म मेटने को अर्चना करूँ।।7।। ऊँ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
भौतिक सुखों की कामना से धर्म भी किया। अतएव क्रिया मात्र से शिव शर्म ना लिया।।
अनंत ज्ञान हेतु नाथ प्रार्थना करूँ।
मोक्ष लक्ष्मी प्राप्त हेतु अर्चना करूँ।।8।। ऊँ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
वसु द्रव्यलेय श्रेष्ठ आत्म द्रव्य मिलाऊँ। अनंतनाथ के चरण में शीघ्र चढ़ाऊँ।
अनंत ज्ञान हेतु नाथ प्रार्थना करूँ।
सिद्ध पद के हेतु अर्चना करूँ।।9..॥ ऊँ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
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