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शीतल मलय सुगंधित चंदन है चढ़ाया। नश्वर सुखों में रुल रहा दुख महान है ।।
अनंत ज्ञान हेतु नाथ प्रार्थना करूँ। संसार ताप नाश हेतु अर्चना करू ||2||
ॐ ह्रीं श्री अनंतनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
अक्षय प्रभु अनंतनाथ सुख निधान हैं। नश्वर सुखों में रुल रहा दुख महान हैं ।।
अनंत ज्ञान हेतु नाथ प्रार्थना करूँ।
अखण्ड पद की प्राप्ति हेतु अर्चना करूँ || 3 ||
ॐ ह्रीं श्री अनंतनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये निर्वपामीति स्वाहा।
निष्काम आप नाम है न कोई काम है । न नाम है न धाम है निज में विराम है || अनंत ज्ञान हेतु नाथ प्रार्थना करूँ। अखण्ड ब्रह्मचर्य हेतु अर्चना करूँ ॥4॥
ऊँ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
आनंद सरोवर निमग्न आप हैं प्रभो । तृष्णा के जाल में फँसा उबार लो प्रभो ॥ अनंत ज्ञान हेतु नाथ प्रार्थना करूँ।
क्षुधा व्यथा के नाश हेतु अर्चना करूँ ॥5॥
ऊँ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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