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________________ जलचन्दन अक्षत, फूल चरु, चत, दीप धूप अति फल लावै। पूजा को ठानत, जो तुम जानत, सो नर द्यानत सुखपावै।। ऊँ ह्रीं श्री जिनमुखोद्रभवसरस्वतीदेव्यै अर्ध्यम निर्वपामीति स्वाहा।। जयमाला सोरठा ओंकार ध्वनिसार, द्वादशांगवाणी विमल। नमों भक्ति उर धार, ज्ञान करै जडता हरै।। पहलो आचारांग बखानो, पद अष्टादश सहस प्रमानो। दूजो सुत्रकृतं अभिलाषं, पद छत्तीस सहस बयालिस पदसरधानम्। तीजो ठानाअंग सुजानं, सहस बयालिस पदसरधानम्। चौथो समवायांग निहारं, चौसठ सहस लाख इकधारम पंचम व्याख्याप्रज्ञप्ति विसतारं, दोय लाख अट्ठाइस सहसं। छट्ठो ज्ञातृकथा विसतारं, पाँच लाख छप्पन हज्जारं।। सप्तम उपासकाध्ययनंगं, सत्तर सहस ग्यारलख भंग। अष्टम अंतकृत दस ईसं, सहस अट्ठाइस लाख तेइस।। नवमअनुत्तरदश सुविशालं, लाख बानवै सहस चवालं। दशम प्नव्याकरण विचारं, लाख तिरानव सोल हजारं।। ग्यारम सूत्रविपाक सुभाखं, एक कोड चौरासी लाखं। चारकोडि अरु पंद्रह लाखं, दो हजार सब पद गुरु शाख।। द्वादश दृष्टि वाद पनभेदं, इकसौ आठ कोडि पंवेदं। अडसठ लाख सहस छप्पन हैं, सहित पंचपद मिथ्या हन हैं।। इक सौ बारह कोडि बखानो, लाख तिरासी उपर जानो। ठावन सहस पंच अधिकाने, द्वादश अंग सर्वपद माने।। कोडि इकावन आठ ही लाखं, सहस चुरासी छहसौ भाखं। साढे इकीस श्लोक बताये, एक एक पद के ये गाये।। 25
SR No.009249
Book TitleJain Diwali Sampurna Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M015
File Size2 MB
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