SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म : प्राचीनतम जीवित धर्म मानव सभ्यता के आरम्भ से ही भारत ने राष्ट्रों की आध्यात्मिक माता होने का अपना कर्तव्य सदा निभाया है। डाक्टर एस. सी. विद्याभूषण कहते हैं- “यदि भारत अपनी आध्यात्मिक और दार्शनिक विकास के लिए विश्व में अद्वितीय है तो कोई भी इंकार नहीं कर सकता कि इसका श्रेय जैनों को ब्राह्मणों और बौद्धों से कम नहीं है।" अन्य विद्वानों के समान वे भी इस दृष्टिकोण को मानते हैं कि "जैनधर्म प्राचीनतम और महानतम धर्मों में से एक है।" सर सन्मुख शेट्टी कहते हैं- “जैनधर्म की विशालता के बारे में कुछ भी कहना मेरी क्षमता से परे है। भारतीय संस्कृति को जैनों का योगदान अद्वितीय है। मेरे इस कथन को प्रमाणित करने के लिए मैंने पर्याप्त रूप से पढ़ा है। मैं व्यक्तिगत रूप से मानता हूँ कि यदि भारत पर केवल जैनधर्म की पकड़ मजबूत होती, तो सम्भवतः हमारे पास अधिक सङ्गठित भारत और निश्चित रूप से वर्तमान से विशाल भारत होता।" धर्म की दृष्टि से देखने पर उच्चतम आदर्शों को समझना ही जैनधर्म का मुख्य उद्देश्य रहा है, जिसे व्यक्ति की भौतिक और नैतिक प्रकृति अपने अन्तिम लक्ष्य की तरह चुनती है और जो प्रासङ्गिक रूप से सर्व व्यापकता का प्रमुख मानदण्ड है। फिर भी बैरिस्टर सी. आर. जैन के अनुसार “तीर्थङ्करों के इस मत अर्थात् जैनधर्म की उत्पत्ति पूर्वी विद्वानों के लिए, जिन्होंने इसकी उत्पत्ति के विषय में हर प्रकार से कल्पनाएँ विकसित की हैं, परिकल्पना और त्रुटि का सच्चा स्रोत है। वास्तव में साधारणरूप से अनभिज्ञता और पर्याप्त जानकारी के अभाव में कभी-कभी गहरी धारणा और पूर्व
SR No.009248
Book TitleJain Dharm Prachintam Jivit Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherDharmoday Sahitya Prakashan
Publication Year2011
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy