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रोग शोक भय व्याधी मिटावो, भव सागर से पार लगाओ घिरा कर्म से चौरासी भटका, मोह माया बन्धन में अटका संयोग – वियोग भव भव का नाता, राग द्वेष जग में भटकता हित मित प्रिय प्रभु की वानी, सब पर कल्याण करे मुनि धयानी भव सागर बीच नाव हमारी, प्रभु पार करो यह विरद तिहारी मन विवेक मेरा जब जागा, प्रभु दर्शन से कर्ममल भागा नाम आपका जपे जो भाई, लोका लोक सम्पदा पाई कृपा दृष्टी जब आपकी होवे, धन अरोग्य सुख समृद्धि पावे प्रभु चरणन में जो जो आवे, श्रद्धा भक्ती फल वांछित पावे प्रभु आपका चमत्कार है न्यारा, संकट मोचन प्रभु नाम तुम्हारा
सर्वज्ञ अनंत चतुष्टय के धारी, मन वच तन वंदना हमारी सम्मेद शिखर से मोक्ष सिधारे, उद्धार करो मैं शरण तिहारी ॥
महाराष्ट्र का पैठण तीर्थ, सुप्रसिद्ध यह अतिशय क्षेत्र । मनोज्ञ मन्दिर बना है भारी, वीतराग की प्रतिमा सुखकारी ॥ चतुर्थकालीन मूर्ति है निराली, मुनिसुव्रत प्रभु की छवी है प्यारी । मानस्तंभ उतंग की शोभा न्यारी, देखत गलत मान कषाय भारी |
मुनिसुव्रत शनिग्रह अधिष्टाता, दुख संकट हरे देवे सुख साता । शनि अमावस की महिमा भारी, दुर – दुर से यहा आते नर नारी ।। सम्यक् श्रद्धा से चालिसा, चालिस दिन पढिये नर-नार । मुनि पथ के राही बन, भक्ति से होवे भव पार ।।
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