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चट चट चट अटपट नटत नाट, झट झट झट हट नट शट विराट । इमि नाचत राचत भगत रंग, सुर लेत जहाँ आनंद संग ॥९॥
इत्यादि अतुल मंगल सुठाठ, तित बन्यो जहाँ सुरगिरि विराट । पुनि करि नियोग पितुसदन आय, हरि सौंप्यौ तुम तित वृद्ध थाय ॥१०॥
पुनि राजमॉहिं लहि चक्ररत्न, भोग्यो छखंड करि धरम जत्न । पुनि तप धरि केवलऋद्धि पाय, भविजीवन को शिवमग बताय ॥११॥ __ शिवपुर पहुँचे तुम हे जिनेश, गुनमण्डित अतुल अनंत भेष । मैं ध्यावतु हों नित शीश नाय, हमरी भवबाधा हरि जिनाय ॥१२॥
सेवक अपनो निज जान जान, करुना करि भौभय भान भान । यह विघनमूल तरु खण्ड खण्ड, चितचिन्तित आनन्द मण्ड मण्ड ॥१३॥ घत्ता- श्री शान्ति महंता शिवतियकंता, सुगुन अनन्ता भगवन्ता । भव भ्रमन हनंता, सौख्य अनन्ता, दातारं तारनवन्ता ॥१४॥
ॐ ह्रीं श्री शान्तिनाथ जिनेन्द्राय महाघु निर्वपामीति स्वाहा ।
रूपक सवैया शान्तिनाथ जिनके पद पंकज, जो भवि पूजै मनवचकाय, जनम जनम के पातक ताके, ततछिन तजिकैं जाय पलाय । मनवाँछित सुख पावै, सौ नर, बाँचें, भगतिभाव अतिलाय,
ताते वृन्दावन नित वन्दै जा शिवपुर-राज कराय ॥
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ।
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