________________
गुरुदत्तादिक शिव पद हाय, तिनि को हम वंदें सीस नाय ।। व्याल महा व्याल मुनीश दोइ, श्री नागकुमार मिलि तीन हो । श्री अष्टापद तें मुक्ति होई, तिनि आठ कर्म मल को सुधोई।। अचलापुर की दिसि में ईशान, तहां मेढ़गिरि नामा प्रधान । मुनि तीन कोडि ऊपरि सुजोई, पंचास लाख मिलि मुक्ति होइ ।।
वंशस्थलवन कुंथु पहार, कुलभूषण देशभूषण कुमार। भारी उपसर्ग कर्यो वितीत, तिनि मुक्ति लई अरि कर्म जीत जसरथ के सुत सत पंच सार, कलिंग देश तें मुक्ति धार। मुनि कोटि शिला तें मुक्ति लीन, तिनको वंदन मन वचन की ।।
वरदत्तादिक पांचों मुनीश, तिनि मुक्ति लई नित नमूं शीस श्री बाहुबली बल अधिक जान, वसु कर्म नाशि के मोक्ष थान।। जहं पंचकल्याण जिनेन्द्र देव, तिनि की हम निति मांगे सुसेव
यह अरज गरीबन की दयाल, निर्वाण देऊ हमको सु हाल ||
ॐ ह्रीं भरतक्षेत्र सम्बन्धी निर्वाण क्षेत्रेभ्यः पूर्णायं निर्वपामीति स्वाहा।
अडिल्ल
यह गुण माल महान सुभविजन गाइयो । स्वर्ग मुक्ति सुखदय कंठ में लाइयो । यातें सब सुख होय सुजस को पाय के भवदधि उतरौं पार शरण प्रभु आय के || ॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
797