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अति धवल अक्षत खण्ड-वर्जित, मिष्ट राजन भोग के। कलधौत-थारा भरत सुन्दर, चुनित शुभ उपयोग के ॥ मन्वादि चारण-ऋद्धि-धारक, मुनिन की पूजा करूं।
ता करें पातक हरें सारे, सकल आनन्द विस्तरूं ॥ ॐ ह्रीं श्रीमन्वादिसप्तर्षिभ्यो अक्षयपद प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।
बहु-वर्ण सुवरण-सुमन आछै, अमल कमल गुलाब के।
केतकी चंपा चारु मरुआ, चुने निज कर चावके । मन्वादि चारण-ऋद्धि-धारक, मुनिन की पूजा करूं ।
ता करें पातक हरें सारे, सकल आनन्द विस्तरूं । ॐ ह्रीं श्रीमन्वादिसप्तर्षिभ्यो कामबाण विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।
पकवान नाना भॉति चातुर, रचित शुद्ध नये-नये ।
सदमिष्ठ लाड़ आदि भर बह. परटके थारा लये॥ मन्वादि चारण-ऋद्धि-धारक, मुनिन की पूजा करूं ।
ता करै पातक हरें सारे, सकल आनन्द विस्तरूं ॥ ॐ ह्रीं श्रीमन्वादिसप्तर्षिभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
कलधौत-दीपक जड़ित नाना, भरित गोघृत-सारसों। अतिज्वलितजग-मग ज्योतिजाकी, तिमिर नाशनहारसो ॥ मन्वादि चारण-ऋद्धि-धारक, मुनिन की पूजा करूं ।
ता करें पातक हरें सारे, सकल आनन्द विस्तरूं ॥ ॐ ह्रीं श्रीमन्वादिसप्तर्षिभ्यो मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।
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