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हित मित सत्य वचन मुख कहिये, सो सतवादी केवल लहिये ॥११॥
मन वच काय न चोरी करिये, सोई अचौर्य-व्रत चित धरिये। मनमथ-भय मन रंच न आने, सो मुनि ब्रह्मचर्य व्रत ठानै ॥१२॥
परिग्रह देख न मूर्छित होई, पंच महाव्रत-धारक सोई। महाव्रत ये पाँचों सु खरे हैं, सब तीर्थंकर इनको करे हैं ॥१३॥
मन में विकल्प रंच न होई, मनोगुप्ति मुनि कहिये सोई । वचन अलीक रंच नहिं भाडं, वचन गुप्ति सो मुनिवर राखें ॥१४॥
कायोत्सर्ग परीषह सहे हैं, ता मुनि काय-गुप्ति जिन कहि हैं। पंच समिति अब सुनिये भाई, अर्थ सहित भाखों जिनराई ॥१५॥
हाथ चार जब भूमि निहारें, तब मुनि ईर्यापथ पद धारे । मिष्ट वचन मुख बोलें सोई, भाषा-समिति तास मुनि होई ॥१६॥
भोजन छियालिस दूषण टारें, सो मुनि एषण शुद्धि विचारें । देखिके पोथी ले अरु धर हैं, सो आदान-निक्षेपण वरि हैं ॥१७॥
मल-मूत्र एकान्त जु डारें, परतिष्ठापन समिति सँभारें । यह सब अंग उनतीस कहे हैं, जिन भाखे गणधर ने गहे हैं ॥१८॥
आठ-आठ-तेरहविधि जानो, दर्शन-ज्ञान-चरित्र सु ठानो । ताते शिवपुर पहुँचो जाई, रत्नत्रय की यह विधि भाई ॥१९॥
रत्नत्रय पूरण जब होई, क्षमा क्षमा करियो सब कोई। चैत माघ भादों त्रय बारा, क्षमा पर्व हम उर में धारा ॥२०॥ दोहा- यह क्षमावणी आरती, पढ़े सुनै जो कोय ।
___कहे मल्ल सरधा करो, मुक्ति-श्री-फल होय ॥ ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शन-अष्टांगसम्यग्ज्ञान-त्रयोदशविध सम्यक्-चारित्रेभ्यो नमः अनर्घपदप्राप्तये महाऱ्या
निर्वपामीति स्वाहा।
सोरठा दोष न गहियो कोय, गुण गण गहिये भाव सौं । भूल चूक जो होय, अर्थ विचारि जु शोधिये।।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ।
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