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नवम अनुत्तर दश सुविशालं । लाख बानवें सहस चवालं । दशम प्रश्नव्याकरण विचारं । लाख तिरानव सोल हजारं ॥६॥
ग्यारम सूत्रविपाक सु भाखं । एक कोड़ि चौरासी लाखं । चार कोड़ि अरु पन्द्रह लाखं । दो हजार सब पद गुरुभाखं ॥७॥
द्वादश दृष्टिवाद पनभेदं । इकसौ आठ कोड़ि पन वेदं । अड़सठ लाख सहस छप्पन हैं । सहित पंचपद मिथ्या हन हैं ॥८॥ इक सौ बारह कोड़ि बखानो। लाख तिरासी ऊपर जानो। ठावन सहस पंच अधिकाने । द्वादश अंग सर्व पद माने ॥९॥ कोड़ि इकावन आठ ही लाखं । सहस चौरासी छह सौ भाखं । साढ़े इक्कीस श्लोक बताये । एक एक पद के ये गाये ॥१०॥
दोहा जा वानी के ज्ञान में, सूझै लोक अलोक।
द्यानत जग जयवंत हो, सदा देत हूँ धोक ॥ ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतिदेव्यै पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा ।
सरस्वती स्तवन
शिखरिणी छन्द जगन्माताख्याता जिनवर मुखांभोज उदिता। भवानीकल्याणी मुनि मनुज मानी प्रमुदिता ॥
महादेवीदुर्गा दरनि दुःखदाई दुरगती। अनेकाएकाकी द्वययुत दशांगी जिनमती ॥१॥ कहें माता तो को यद्यपि सबही अनादि निधना। कथंचित् तो भी तू उपजि विनशै यों विवरना ॥
धरै नाना जन्म प्रथम जिनकेबादअबलों। भयोत्यों विच्छेद प्रचुर तुव लाखों बरसलों ॥२॥ महावीर स्वामी जब सकल ज्ञानी मुनि भये । बिडौजा के लाये समवसृत मेंगौतम गये ॥ तबै नौका रूपा भव जलधि मांही अवतरी। अरूपा निर्वर्णा विगत भ्रम सांची सुखकरी ॥३॥
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