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बादाम छुहारी, लोंग सुपारी, श्रीफलभारी, ल्यावत I मन वांछित दाता, मेंट असाता, तुम गुन माता, ध्यावत हैं ॥ तीर्थंकर की धुनि, गनधर ने सुनि, अंग रचे चुनि, ज्ञानमई । सो जिनवर वानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवन मानी पूज्य भई ॥ ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतिदेव्यै मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।
नयनन सुखकारी, मृदु गुनधारी, उज्ज्वल भारी, मोलधरैं । शुभ गंध सम्हारा, वसन निहारा, तुम तन धारा ज्ञान करें ॥ तीर्थंकर की धुनि, गनधर ने सुनि, अंग रचे चुनि, ज्ञानमई । सो जिनवर वानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवन मानी पूज्य भई ॥ ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतिदेव्यै वस्त्रं निर्वपामीति स्वाहा । जल चंदन अक्षत, फूल चरु अरु, दीप धूप अति, फल लावै । पूजा कोठा, जो तुम जानत, , सो नरद्यानत सुख पावै ॥ तीर्थंकर की धुनि, गनर ने सुनि, अंग रचे चुनि, ज्ञानमई । सो जिनवर वानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवन मानी पूज्य भई ॥ ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतिदेव्यै अनर्घपदप्राप्तये अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला
सोरठा
ओंकार धुनि सार, द्वादशांग वाणी विमल । नमौं भक्ति उरधार, ज्ञान करै जड़ता हरै ॥ १ ॥ पहला आचारांग बखानो । पद अष्टादश सहस प्रमानो । दूजो सूत्रकृतं अभिलाषं । पद छत्तीस सहस गुरु भाषं ॥२ ॥
तीजो ठाना अंग सुजानं । सहस बियालिस पद सरधानं । चौथो समवायांग निहारं । चौसठ सहस लाख इकधारं ॥ ३ ॥ पंचम व्याख्या प्रज्ञपति दरशं । दोय लाख अट्ठाइस सहसं । छट्ठो ज्ञातृकथा विसतारं । पांच लाख छप्पन हज्जारं ॥४ ॥ सप्तम उपासकाध्ययनागं । सत्तर सहस ग्यारलख भंगं । अष्टम अंतकृतं दस ईसं । सहस अठाइस लाख तेईसं ॥५ ॥
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