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सरस्वती पूजा (कविवर द्यानतराय)
जनम जरा मृतु छय करै, हरै कुनय जड़ रीति ।
भव सागर सौं ले तिरे, पूजें जिन वच प्रीति ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतिदेवि ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । (इति आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतिदेवि ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । (स्थापनम्) ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतिदेवि ! अत्र मम सन्निहिता भव भव वषट् । (सन्निधिकरणम्)
त्रिभंगी छीरोदधि गंगा, विमल तरंगा, सलिल अभंगा, सुखसंगा। भरि कंचन झारी, धार निकारी, तृषा निवारी, हित चंगा ॥ तीर्थंकर की धुनि, गनधर ने सुनि, अंग रचे चुनि, ज्ञानमई ।
सो जिनवर वानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवन मानी पूज्य भई ॥ ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतिदेव्यै जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।
करपूर मंगाया, चन्दन आया, केशर लाया, रंग भरी ।
शारदपद वंदौं, मन अभिनंदी, पापनिकंदौं, दाह हरी ॥ तीर्थंकर की धुनि, गनधर ने सुनि, अंग रचे चुनि, ज्ञानमई ।
सो जिनवर वानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवन मानी पूज्य भई ॥ ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतिदेव्यै भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।
सुखदास कमोद, धारकमोदं, अति अनुमोदं, चंदसमं । बहुभक्ति बढ़ाई, कीरति गाई, होहु सहाई, मात ममं ॥ तीर्थंकर की धुनि, गनधर ने सुनि, अंग रचे चुनि, ज्ञानमई ।
सो जिनवर वानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवन मानी पूज्य भई ॥ ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतिदेव्यै अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।
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