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विघन सधन मिट जाय, सदा सुख सो नर पावै । ऋषि मंडल शुभ यंत्र तनी, तो पूज रचावै ॥ भावभक्ति युत होय, सदा जो प्राणी ध्यावे । या भव में सुख भोग, स्वर्ग की सम्पत्ति पावे । या पूजा परभाव मिट, भव भ्रमण निरन्तर । यातैं निश्चय मानि करो, नित भाव भक्तिधर ॥
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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