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त्रैलोक्येश्वर-वन्दनीय-चरणाः प्रापुः श्रियं शाश्वतीं,
यानाराध्य निरुद्ध-चण्ड-मनसः सन्तोअपि तीर्थमराः । सत्सम्यक्त्व-विबोध-वीर्य-विशदाव्याबाधताद्यैर्गुणैर्युक्तांस्तानिह तोष्टवीमि सततं सिद्धान् विशुद्धोदयात् ॥
पुष्पांजलिं क्षिपेत्
जयमाला विराग सनातन शान्त निरंश, निरामय निर्भय निर्मल-हंस। सुधाम विबोध-निधान विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध-समूह ॥१॥
विदूरित-संसृति-भाव निरंग, समामृत-पूरित देव विसंग। अबन्ध कषाय-विहीन विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध-समूह ॥२॥ __ निवारित-दुष्कृतकर्मविपाश, सदामल-केवल-केलिनिवास। भवोदधिपारग शान्त विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध-समूह ॥ ३ ॥
अनन्त-सुखामृतसागर धीर, कलंक-रजो-मल-भूरि-समीर । विखण्डितकाम विराम विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥४ ॥
विकारविवर्जित तर्जितशोक, विबोध सुनेत्र विलोकितलोक । विहार विराव विर विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध-समूह ॥५॥
रजोमल-खेद-विमुक्त विगात्र, निरन्तर नित्य सुखामृतपात्र । सुदर्शन-राजित नाथ विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध-समूह ॥६॥
नरामर-वन्दित निर्मलभाव, अनन्त-मुनीश्वर-पूज्य विहाव । सदोदय विश्वमहेश विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध-समूह ॥७॥
विदम्भ वितृष्ण विदोष विनिद्र, परात्पर शंकर सार वितन्द्र । विकोप विरूप विशंक विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध-समूह ॥८॥
जरा-मरणोज्झित वीतविहार, विचिन्तित निर्मल निरहंकार । अचिक्त्य-चरित्र विदर्प विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥९॥ विवर्ण विगन्ध विमान विलोभ, विमाय विकाय विशब्द विशोभ ।
अनाकुल केवल सार्व विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध-समूह ॥१०॥ असम-समयसारं चारु-चैतन्य-चिह्न, पर-परिणति-मुक्तं पद्मनन्दीन्द्र-वन्द्यम् ।
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