________________
अमलं अचलं अटलं अतुलं, अरलं अछलं अथलं अकुल।।5।।
अजरं अमरं अहरं अडरं, अपरं अभरं अशरं अनरं। अमलीन अछीन अरीन हने, अमतं अगतं अरतं अघने।।6।। अछुधा अतृषा अभयातम हो, अमदा अगदा अवदातम हो। अविरुद्ध अक्रुद्ध अमानधुना, अतलं असलं अनअन्त-गुना।।7।।
अरसं सरसं अकलं सकलं, अवचं सवचं अमचं सबलं। इन आदि अनेक प्रकार सही, तुमको जिन सन्त जपें नित ही।8।
अब मैं तुमरी शरना पकरी, दुख दूर करो प्रभुजी हमरी। हम कष्ट सहे भवकानन में, कुनिगोद तथा थल-आनन मे।।9।।
तिति जामन मर्न सहे जितने, कहि केम सकें तुमसों तितने। सुमुहूरत अन्तर माहिं धरे, छह त्रै त्रय छः छहकाय खरे।।10।
छिति वह्नि वयारिक साधरनं, लघु थूल विभेदनि सों भरनं। परतेक वनस्पति ग्यार भये, छह हजार दुवादश भेद लये।।11।
सब द्वै त्रय भू षट छः सु भया, इक इन्द्रियकी परजाय लया।। जुग इन्द्रिय काय असी गहियो, तिय इन्द्रिय साठनिमें रहियो।।12।।
चतुरिंद्रिय चालिस देह धरा, पनइन्द्रियके चवबीस वरा। सब ये तन धार तहाँ सहियों, दुखघोर चितारित जात हियो।।13।। __ अब मो अरदास हिये धरिये, सुखदंद सबै अब ही हरिये।। मनवांछित कारज सिद्ध करो, सुखसार सबै घर रिद्ध भरो।।14।।
घत्ता जय विमलजिनेशा, नुत-नाकेशा, नागेशा नरईश सदा। भवताप-अशेषा, हरन निशेशा, दाता चिन्तित शर्म सदा।।15।। ॐ हीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णाऱ्या निर्वपामीति स्वाहा।
दोहा श्रीमत विमल-जिनेशपद, जो पूजें मनलाय। पूजे वांछित आश तसु, मैं पूजौं गुनगाय।।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ।
74