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शुकलमाघ तुरी तिथि जानिये, जनम-मंगल तादिन मानिये।
हरि तबै गिरिराज विर्षे जजे, हम समर्चत आनन्दको सजे।। ऊँ ह्रीं माघशुक्ला-चतु,यां जन्ममंगल-प्राप्ताय श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।2।
तप धरे सितमाघ तुरी भली, निज सुधातम ध्यावत हैं रली।
हरि फनेश नरेश जजें तहाँ, हम जजें नित आनन्दसों इहाँ।। ऊँ ह्रीं माघशुक्ला-चतु,यां तपोमंगल-प्राप्ताय श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।31
विमल माघछठी हनि घातिया, विमलबोध लयो सब भासिया।
विमल अर्घ चढ़ज्ञय जजों अबै, विमल-आनन्द देह, हमें सबै।। ऊँ ह्रीं माघशुक्ला-षष्ठ्यां केवलज्ञान-प्राप्ताय श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।4।
भ्रमरसाढ़छठी अति पावनों, विमल सिद्ध भये मन भावनों।
गिरसमेद हरी तित पूजिया, हम जजै इत हर्ष धरै हिया।। ऊँ ह्रीं आषाढकृष्णा-षष्ठयां मोक्षमंगल-प्राप्ताय श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।51
जयमाला दोहा गहन चहत उडुगन गगन, छिति-तिथि के छहँ जेम। तिमि गुन-वरनन वरनन, माँहि होय तव केम।।1।।
साठ धनुष तन तुंग है, हेम वरन अभिराम।। वर वराह पद-अंक लखि, पुनि पुनि करों प्रनाम।।2।।
छन्द-तोटक जय केवलब्रह्म अनन्तगुनी, तुम ध्यावत शेष महेश मुनी। परमातम पूरन पाप हनी, चित-चिंतत-दायक इष्ट धनी।।3।।
भव-आतप-ध्वंसन इन्दु-करं, वर सार रसायन शर्मभरं। सब जन्म-जरा-मृतु-दाहहरं, शरनागत-पालन नाथ वरं।।4।। नित सन्त तुम्हें इन नामनि-तें, चित-चिन्तत हैं गुनगामनि-तैं।
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