________________
मिथ्यावादी दुष्ट लोभहंकार भरे हैं। सबको छिन में जीत जैन के मेरु खड़े हैं। फल अति उत्तम सौं जजों वांछित फल दातार । सीमंधर जिन आदि दे बीस विदेह मँझार ॥
श्री जिनराज हो भव तारण तरण जिहाज ॥ ॐ ह्रीं श्रीविद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।
जल फल आठों दर्व अरघ कर प्रीति धरी है। गणधर इन्द्रनिहूं तें थुति पूरी न करी है।
द्यानत सेवक जानके जग ते लेहु निकार । सीमंधर जिन आदि दे बीस विदेह मँझार ॥
श्री जिनराज हो भव तारण तरण जिहाज ॥ ॐ ह्रीं श्रीविद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला (सोरठा) ज्ञान सुधाकर चन्द, भविक-खेत हित मेघ हो । भ्रम-तम-भान अमन्द तीर्थंकर बीसों नमों ॥
चौपाई (१६ मात्रा) सीमंधर सीमंधर स्वामी, जुगमन्धर जुगमन्धर नामी। बाहु बाहु जिन जगजन तारे, करम सुबाहु बाहुबल दारे ॥ १ ॥
जात सुजातं केवलज्ञानं, स्वयंप्रभु प्रभु स्वयं प्रधानं । ऋषभानन ऋषिभानन दोषं, अनन्तवीरज वीरज कोषं ॥२ ॥ सौरी प्रभ सौरी गुणमालं, सुगुण विशाल विशाल दयालं । वज्रधार भवगिरि वज्जर हैं, चन्द्रानन चन्द्रानन वर हैं ॥३॥
भद्रबाहु भद्रनि के करता, श्रीभुजंग भुजंगम हरता। ईश्वर सबके ईश्वर छाजें, नेमि प्रभु जस नेमि विराजै ॥ ४ ॥
वीरसेन वीरं जग जाने, महाभद्र महाभद्र बखाने ।
734