________________
दीप जोति तमहार, घट पट परकाशै महा।
सम्यक्चारित सार, तेरहविध पूजौं सदा ॥ ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।
धूप घ्रान सुखकार, रोग विघन जड़ता हरे ।
सम्यक्चारित सार, तेरहविध पूजौं सदा ॥ ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।
श्रीफल आदि विथार, निहचै सुर शिव फल करै ।
सम्यक्चारित सार, तेरहविध पूजौं सदा ॥ ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय फलं निर्वपामीति स्वाहा ।
जल गन्धाक्षत चारु, दीप धूप फल फूल चरु ।
सम्यक्चारित सार, तेरहविध पूजौं सदा । ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला
दोहा आप आप थिर नियत नय, तप संजम व्योहार ।
स्व-पर-दया दोनों लिये, तेरह-विध दुखहार ॥ सम्यक्चारित रतन सँभालो, पाँच पाप तजिके व्रत पालो। पंच समिति त्रय गुपति गहीजे, नरभव सफल करहु तन छीजे।।
छीजे सदा तन को जतन यह एक संजम पालिए। बहु रुल्यो नरक-निगोद माँहीं, विष-कषायनि टालिए । शुभ करम-जोग सुघाट आयो, पार हो दिन जात है।
द्यानत धरम की नाव बैठो, शिव-पुरी कुशलात है । ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय महापँ निर्वपामीति स्वाहा ।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
722