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दीपज्योति तमहार, घट-पट परकाशै महा । सम्यग्दर्शनसार, आठ अंग पूजौं सदा ॥ ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।
धूप घ्रान-सुखकार, रोगविघन जड़ता हरै । सम्यग्दर्शनसार, आठ अंग पूजौं सदा ॥ ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।
श्रीफल आदि विथार, निहचै सुर - शिवफल करै । सम्यग्दर्शनसार, आठ अंग पूजौं सदा ॥ ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय फलं निर्वपामीति स्वाहा ।
जल गंधाक्षत चारु, दीप धूप फल फूल चरु । सम्यग्दर्शनसार, आठ अंग पूजौं सदा ॥ ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला
दोहा - आप आप निहचै लखै, तत्त्व - प्रीति व्योहार । रहितदोष पच्चीस हैं, सहित अष्ट गुन सार ॥
सम्यक् दरशन - रतन गहीजै, जिन वच में संदेह न कीजै । इह-भव विभव चाह दुखदानी, पर-भव भोग चहे मत प्रानी || प्रानी गिलान न करि अशुचि लखि, धरम- गुरु प्रभु परखिये ।
पर-दोष ढकिये धरम डिगते को सुथिर कर हरखिये ॥ चहुँ संघ को वात्सल्य कीजै, धरम की परभावना । गुन आठ सौं गुन आठ लहिकै, इहाँ फेर न आवना ।। ॐ ह्रीं अष्टांगसहितपञ्चविंशतिदोषरहितसम्यग्दर्शनाय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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