________________
सम्यग्दर्शनपूजा
दोहा - सिद्ध-अष्ट-गुणमय प्रगट, मुक्त जीव सोपान ।
ज्ञान चरित जिहँ बिन अफल, सम्यक् दर्श प्रधान ॥ ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शन ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । (इति आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शन ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । (स्थापनम्) ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शन ! अत्र मम सन्निहितं भव भव वषट् । (सन्निधिकरणम्)
सोरठा नीर सुगन्ध अपार, तृषा हरै मल छय करै । सम्यग्दर्शनसार, आठ अंग पूजौं सदा ॥ ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।
जल केसर घनसार, ताप-हरै शीतल करै । सम्यग्दर्शनसार, आठ अंग पूजौं सदा ॥ ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।
अछत अनूप निहार, दारिद नाशै सुख भरे । सम्यग्दर्शनसार, आठ अंग पूजौं सदा ॥ ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।
पुहुप सुवास उदार, खेद हरै मन शुचि करे। सम्यग्दर्शनसार, आठ अंग पूजौं सदा ॥ ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।
नेवज विविध प्रकार, छुधा हरै थिरता करे । सम्यग्दर्शनसार, आठ अंग पूजौं सदा ॥ ॐ ह्रीं अष्टांगसम्यग्दर्शनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
717